आयोजन एवं विधि :
श्री जयराम विद्यापीठ द्वारा गीता जयन्ती के पावन पर्व पर गीतायज्ञ, गीताप्रचार एवं श्रीमद्भागवत कथा जैसे आध्यात्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ समाज-कल्याण की भावना से 1992 में सामूहिक विवाह का आयोजन किया, जो निरन्तर पन्द्रह वर्षो से गीता जयन्ती महोत्सव का मुख्य आकर्षण बना हुआ है। निर्धन परिवारों को मान-सम्मान देने तथा आर्थिक सहयोग के द्वारा उन्हें सबल बनाने के लिए यह आयोजन सार्थक एवं सफल सिद्ध हुआ है। भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा गीता में उपदिष्ट कर्मयोग और समत्व के क्रियात्मक प्रयोग को साक्षात् करना हो तो ‘सामूहिक विवाह’ के आयोजन को देखा जा सकता है।
इस आयोजन की प्रासंगिकता और उपयोगिता इसी बात से प्रमाणित हो जाती है कि प्रतिवर्ष सामूहिक विवाह के लिए आवेदन करने वालों की सूची उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है और इसी आधार पर विवाहों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। समाज में व्याप्त दहेज प्रथा के उन्मूलन के लिए यह एक अनूठा प्रयास है।
सामूहिक विवाह में वरपक्ष ओर कन्यापक्ष दोनों की ही सहमति से विवाह का अयोजन किया जाता है। सर्वप्रथम गाँवों ओर शहरों में प्रचार करके विवाह-योग्य युवक और युतियों के माता-पिता अथवा अभिभावकों से आवेदन -पत्र लिए जाते हैं। आवेदन-पत्र पर गाँव के सरपंच अथवा नगर पार्षद से उस प्रस्ताव की संस्तुति करवायी जाती है। जिला प्रशासन के सक्षम अधिकारियों जयन्ती समाहरो समिति के सदस्यों द्वारा आवेदन-पत्रों की जांच की जाती है। प्रस्ताव का अनुमोदन हो जाने पर दोनों पक्षों को इसकी सूचना दे दी जाती है और विवाह के समय दोनों पक्षों के अभिभावकों तथा अतिथियों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।
विवाह के समय सभी युगलों के लिए अलग-अलग यज्ञ वेदी बनायी जाती है। विवाह सम्पन्न कराने वाले वैदिक पंडित भी यज्ञ-वेदियों पर अलग-अलग ही होते हैं। विवाह-पद्धति में धार्मिक मर्यादा और तदनुरूप रीती का अक्षरश: पालन किया जता है। हिन्दू युगलों का हिन्दू रीति से ,सिख युगलों का सिख धर्म के अनुसार तथा मुस्लिम युगलों का निकाह मुस्लिम धर्म के अनुसार सम्पन्न करवाया जाता है।
दाम्पत्य-सूत्र में बंध जाने के बाद नव-दम्पती परम पूज्य श्री देवेन्द्रस्वरूप ब्रह्मचारी चारी जी महाराज के पावन सान्निध्य में हरियाणा के महामहिम राज्यपाल से आशीर्वाद प्राप्त करते रहे है। अब कर्मठ युवा सन्त श्री ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी महाराज इस परम्परा को सम्पन्न करते है महामहिम राज्यपाल अपने कर- कमलों से सभी युगलों को गृहस्थ जीवन के लिए उपयोगी सामग्री पलंग, बिस्तर, चूल्हा, सिलाई मशीन, घड़ी, साईकिल, ट्रंक, आवश्यक वस्त्र तथा मांगलिक आभूषण कन्यादान के रूप मे प्रदान करते है।
कर्मठ युवा संत श्री ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी जी की प्रेरणा से दानियों की उदारता तथा समिति के सदस्यों के सक्रिय सहयोग ओर प्रगाढ़ निष्ठा से यह आयोजन उत्तरोत्तर लोकप्रिय होता हुआ समाज-कल्याण की दृष्टि से अपना विशिष्ट स्थान बना चुका है।